Wednesday 21 September 2016

असम के संस्कृति और विरासत से एक मुलाकात (भाग -1) Culture and heritage of Assam

बात पिछले वर्ष दिसम्बर 2015 की है। मै एक ऐसे मित्र के घर जा रहा था, जिससे मै सिर्फ एक बार मुलाकात हुआ था जब मै रेलवे के भर्ती परिक्षा के लिए असम आया था।असम के लामडिंग शहर मे पहली मुलाकात मे औपचारिकता पूरा करते हुए नाम पता पूछा। "आपका नाम ?"
"ध्रुवा ज्योति गोगई"
"घर कहां है?"
"तिनसुकिया जिला के छबुआ वायू सेना के बेस कैम्प के पास एक गांव नदुआ गांव"
मै और ध्रुवा ज्योति गोगई ,नवम्बर 2013
मैने गूगल मैप मे वो जगह ढूंढा और रक्षित कर लिया । उसके माता- पिता भी आये हुए थे। उसका परिवार मिलनसार था। जो मुझे बहुत पसंद आया। हमलोग अपना अपना मोबाइल नम्बर लेन देन कर लिया। इस प्रकार दोपहर से शाम तक साथ रहे। उन लोगो को रात को ट्रेन चढाते समय मैने कहा आपका घर आप सब से मिलने जरूर आऊंगा। उन्होने भी आने का बहुत जिक्र किया था। उसके बाद वापसी का ट्रेन पकड़ कर हम सब भी घर के लिए रवाना हो  गये।
मै अपनी मित्र मंडली के साथ कामाख्या मंदिर परिसर मे। 2014

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 निर्मल हृदय स्वछंद विचार वाले लोग मुझे बहुत पसंद है। मुझे ऐसे लोगो के साथ समय बिताना अच्छा लगता है। ऐसा गुण लगभग सभी बच्चो मे होता है। अतःमै खाली समय निर्मल बच्चो के साथ बिताता हूं।मेरा दिनाचार्या है सुबह तैयार हो कर राजकीय पुस्तकालय धनबाद झारखण्ड सरकार, मे अपने पसंद के किताब पढना और शाम को  अपने गांव के प्यारे बच्चो को अपने घर बुलाकर उनसे बात चित करना , पढाना।इस प्रकार मेरे दिन कट रहे थे।
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 एक दिन मेरे फोन पर एक अनजान नम्बर से फोन आया। अवाज़ एक अलग उच्चारण के साथ आ रही थी - "कैसे हो तुम?" "मै ध्रुवा बोल रहा हूं असम से "
मै कुछ देर के लिए ठहर गया और खुशी से बोला - "ठीक हूं । आपना हाल चाल बताओ।"
इसके बाद लगभग हर महिने एक दो बार बात चित होता ।
 लगभग डेढ वर्ष बिद नियुक्ति पत्र मिलने पर मै तिनसुकिया आया।मैने फोन कर कहा कि मै तिनसुकिया आ रहा हूं। वह खुश होखर कहा - पहुंच कर फोन करना ।मै होटल मे ठहरा था वह आया अपने साथ अपना घर जाने बोल रहा था ।लेकिन मेरे साथ एक सहकर्मी मित्र था। और उसका घर वहां से लगभग 40 किमी• दूर था।मुझे सुबह रेलवे मंडल कार्यालय जाना था अतः मै उसका घर नही जा सका । मैने कहा अब मै तो असम मे ही हूं।कभी भी अब तुम्हारा घर आ जाऊंगा। अगले सुबह कागजी औपचारिकता पूरा करके मै कार्यस्थल मरियानी जो वापस गुवाहाटी की ओर लगभग 200 किमी• है, आ गया। इस प्रकार मै नये काम मे लग गया और देखते - देखते एक वर्ष बीत गया।जब मै उसके घर जा रहा था।
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 उसके घर जाने के पहले मन मे तरह तरह के विचार आया कि ये लोग हिन्दी भाषियो के के हिंसात्मक व्यवहार करते है । बीते वर्ष 2012 की एक बड़ी हिंसात्मक घटना हुआ था ।घटना का एक केन्द्र क्षेत्र छबूआ मे था ।लेकिन मन मे एक कोतूहल भी था उन लोगो को जानने समझने का।हिंसात्मक कार्य कुछ असामाजिक लोगो का है अथवा सबकी मानसिकता वही है।
  फोन से उससे निर्देश लेकर और गूगल मैप की मदद से मै उसके गांव नदूआ ग्रान्ट गांव मे उतरा। उसे फोन किया तो वह अपनी दीदी की स्कूटी लेकर मुझे आपने घर ले आया ।उसके घर मे कोतूहल था एक अजनबी मेहमान की खातीरदारी करने के लिए।उसकी मां ज्यादा हिन्दी नही बोल पाती और मै  असमिया बोल नसी पाता । फिर भी काम चलाने भर हम लोग वार्तालाप कर लेते थे। मै उसके घर पर चार दिन रहा।मै वहा रहकर ब्रहामपुत्र नद के तट पर घुमता उसके चाय बगाने मे चाय के बारे मे देखता समझता और शाम को दिकम एक कस्बा जैसा शहर जहां कुछ दुकान है , जाता उसके स्थनीय मित्रो से मिलता बातचित करता।
मेरे मित्र का घर । इसे असम टाइप घर कहते है ।

मै ब्रह्मपुत्र के विशाल बालू के मैदान मे । 

मै और ध्रुवा ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे ।
 इन चार दिनो मे मैने वहा के जन जीवन के बारे मे बहुत कुछ जाना समझा । अगली लेख मे उन सब बातो को रखूंगा ।
 आपको यह लेख कैसा लगा ?  सुझाव जरूर दे ।

6 comments:

  1. Replies
    1. यह कहानी एक यात्रा संस्मरण है।और आगे यहां के रहन सहन एवं पर्यटन की चर्चा होगी ।

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  2. सुंदर। असमवासी मिलनसार होते है। आपको असम का बहुत अचछा अनुभव रहेगा।

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  3. सुंदर। असमवासी मिलनसार होते है। आपको असम का बहुत अचछा अनुभव रहेगा।

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  4. जी हाँ । संतोश जी । मै उनके घर सिर्फ चार दिन रहा और अपने घर जैसा परिवार के लोग अपने परिवार की तरह घुलमिल गया था ।हम लोग को भाषा की समस्या थी पर भावनात्मक जूड़ाव इस समस्या को हरा दिया ।
    धन्यवाद !इसी तरह समय सभय पर यहाँ अपना उपस्थिति दर्ज कराते रहे ।मुझे खुशी होगा।

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  5. bahut hi sundar yatra rahi aap ki..... sach me maa aagaya bhai.... esa or bhi likhiye jis se hame bhi vaha ke darshan ho jaye..... aap ki sabhi yatrao ke liye subhechcha...

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