जब कोई दूर देश से मित्र इधर हमारे पूर्वोत्तर भाग में आते हैं तो अपना दिल बाग-बाग हो जाता है।आज इंदौर के वासी पुराने ब्लॉगर मुकेश भालसे जी नुमालीगढ़ रिफायनरी में अपने काम से आए हैं। और शनिवार का फुर्सत का दिन का सबसे बढ़िया उपयोग उनके साथ आसपास घुमक्कड़ी करके बिताया। मध्य व उत्तर भारत से आने वालों के लिए यहां की हर चीज अनोखा दिखता है। सब उन्हें आकर्षित करता है ।भालसे जी के साथ इन सब चीजों को कम से कम समय में देखने की कोशिश में हम लोग नुमालीगढ़ के गेस्ट हाउस से निकल पड़े चाय बागानों को चीरते हुए बने हाईवे से काजीरंगा नेशनल पार्क व बायोडायवर्सिटी पार्क की ओर। रास्ते में असम की पूरी एक झलक मिल गया। जैसे चाय के बागान, चाय पत्तियां तोड़ती महिलाएं , सड़क किनारे फैली हरियाली और उसी हरियाली के बीच में छिटपुट बने छोटे-छोटे घर, यहां के वासियों के रहन-सहन, बोली चाली और संस्कृति बहुत आकर्षित करती है।जब हम पार्क में पहुंचे तो वहां पूर्वोत्तर के जंगलों से लाकर एक जगह पर एकत्रित किया हुआ बहुत प्रकार के आर्किड मिले। तथा यहां के संग्रहालय में यहां के अलग-अलग जनजातियों और जातियों के और जातियों के समूह के रहन-सहन, खेती-बाड़ी करने के लिए उपकरण, मनोरंजन चीजों का नमूना देखने को मिला, साथ में हथकरघा से चादर गमछा बनाते हुई महिलाएं मिली और सबसे खास बात यहाँ सांस्कृतिक नृत्य का लाइव प्रदर्शन चल रहा था। काज़ीरंगा राष्ट्रीय पार्क अभी बरसात में बंद होने के कारण नही जा सके। अगली बार आने का वादा करके भालसे जी से विदा लिए की अगली बार आएमगे तब काज़ीरंगा नेशनल पार्क और बाकी चीजो को देखेंगे।