Thursday 5 January 2017

ऐतिहासिक नगर तेजपुर असम (भाग -1) (The Historical city Tezpur , Assam)

25 दिसंबर 2016 ( तेजपुर)
 24 -25 दिसम्बर 2016 को ओरछा (मध्य प्रदेश) में घुमक्कड़ों का एक मिलन समारोह था । वहां जाने की तैयारी मैंने भी की थी। लेकिन मेरे पास छुट्टियों की कुछ कमी पड़ गई , जिसके कारण मैं जा ना सका । ओरछा घुमक्कड़ी मिलन के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप मुकेश पांडे जी का ब्लॉग यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं ।ओरछा घुमक्कड़ी मिलन के बारे में वहाँ  आये ब्लाॅगर  डॉक्टर सुमित शर्मा , श्री हरेन्द्र धर्रा ने भी लिखा है । ओरछा ना जाने का मलाल हमें भी था। उसी मलाल को कम करने के लिए मैं कहीं कोई असम का अनछुआ - अनदेखा जगहों को देख लेना चाहता था । बहुत सोच - विचार करने के बाद मुझे एक  मित्र मिला -संतोष नायर जी ।जो असम के तेजपुर शहर में रहते हैं और मैंने तेजपुर घुमने का मन बनाया।

         ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर छोटे-छोटे पहाड़ी नुमा पर बसा एक ऐतिहासिक शहर है। इस शहर का संबंध द्वापर युग के बाणासुर से माना जाता है और वर्तमान मे असम का कला केन्द्र के लिए जाना जाता है। इस शहर के लगभग हर छोटे-बड़े देवस्थान और दर्शनीय जगहो से संबंधित पौराणिक कथा प्रचलित है ।उनमें से कुछ मुख्य जगहों को देखने मैं भी गया। मैं गोलाघाट से लगभग 5 घंटे बस द्वारा यात्रा करने के बाद तेजपुर पहुंचा । हमारी बस नुमालीगढ़, बोकाखाट, काजीरंग के कोहोरा रेन्ज, कलियाबोर होते हुए दोपहर के 02:00 तेजपुर पहुँचाया।रास्ते मे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान(एक सिंग वाले गैन्डा के लिए विश्व प्रसिद्ध है) के कोहोरा रेन्ज के मुख्य प्रवेश द्वार भी मिला । वहाँ आस पास बहुत होम स्टे, गेस्ट हाऊस , होटल दिख रहा था ।जानवर प्रेमी पर्यटक जानवरो को देखने लिए सुरज निकलने के पहले ही सफारी से जंगल की सैर करते है ताकी जानवरो से भेट हो सके । इसीलिए प्रवेश द्वार के आस पास जंगल मे सड़क किनारे बहुत से होटल वगैरह है ।मै तो फिर कभी जंगल और उनके प्राणियो को देखने का विचार मन मे करते हुए बस से गुजर रहे थे।
 तेजपुर पहुंचते ही मैंने होटल में एक कमरा लिया और खाना खाने के बाद घूमने के लिए तैयार हुआ ही था कि मेरे  मित्र संतोष नैयर जी अपने चार पहिया वाहन लेकर मेरे होटल पहुंचे । संतोष नैयर जी बहुत जिंदादिल इंसान हैं। वह मुझसे बहुत गर्मजोशी के साथ मिले, ऐसा लगा ही नहीं कि जिंदगी में हम लोग पहली बार मिल रहे हैं ।बातचित मे समय गवाँये बगैर मैंने अपना कैमरा उठाया और शहर भ्रमण के लिए निकल गए । हम लोग शहर के उत्तरी छोर पर स्थित महा भैरव मंदिर पहुंचे। यह मंदिर द्वापर युग के श्री कृष्ण के समकालीन बाणासुर द्वारा स्थापित है। यह मंदिर  प्राचीन समय में पत्थरो द्वारा निर्मित था लेकिन विध्वसंको द्वार ध्वस्त कर देने के बाद वर्तमान समय मे कंक्रीट से बना हुआ है ।  इस मंदिर का शिवलिंग का पत्थर एक जीवित पत्थर है जो साल दर साल बढ़ती है और यह लगभग जितने भी शिव मंदिर में शिवलिंग स्थापित है उनमें से सबसे बड़ा शिवलिंग है । भ्रमण के दौरान संतोष नैयर जी ने "तेजपुर नाम कैसे पड़ा ?" बहुत रोचक जानकारी दी ।उन्होने मुझे बताते हुए कहा । यहाँ का राजा महाराज बलि  का पुत्र बाणासूर था।    (बलि जिन्होने भगवान के बामन अवतार को तीन पग दान के रूप मे पूरा संसार दान दे दिया था) ।बाणासूर शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था।उसका एक सुन्दर पुत्री थी उषा। जिसे सपने मे एक सुन्दर युवक से प्रेम हो गया था और वह युवक श्रीकृष्ण का पोता अनिरूद्ध था। उषा की एक सखी चित्रलेखा बहुत बड़ी चित्रकार और माया शक्ति के जानकार  थी । चित्रलेखा उषा के लिए रात रातो अनिरूद्ध का अपहरण कर उषा के लिए ले आयी।जब बाणासूर को पता चला कि उसकी पुत्री कृष्ण के पोते से विवाह करना चाहती है तो वह क्रोधित हो गये ।    श्रीकृष्ण उसके मित्र कंस और जरासंघ का शत्रु था वह भी अपना शत्रु मानता था। उषा को अग्निगढ़ (अर्थात् ऐसा किला जिसके चारो ओर आग का घेरा हो जिसके अन्दर से बाहर न कोई आ सकता है और न बाहर से अन्दर कोई प्रवेश कर सकता है ) मे बन्धी बना दिया और अनिरूद्ध को भी कारावास मे डाल दिया।। आनिरूद्ध को छुड़ाने के लिए श्रीकृष्ण की सेना और शिव जी (बाणसूर को सुरक्षा का वरदान दिया था) व बाणासूर की सेना मे भीषण युद्ध हुआ था । जिसके कारण लहू  से धरती लाल हो गयी थी । इसलिए सोनितपुर सोनित (लहू को संस्कृत मे सोनित कहा जाता है) + पुर (नगर) नाम पड़ा ।स्थानिय भाषा मे लहू(खून) को तेज भी कहा जाता है अतः शहर का नाम तेजपुर हो गया।
इन  जगहों को अपने यादों में सजोने के लिए मैंने अपने कैमरे से यहां के कुछ तस्वीरें कैद किया ।
संतोष नैयर जी के साथ
महाभैरव मंदिर का प्रवेश द्वार

महाभैरव मंदिर प्रांगण
महाभैरव मंदिर मे शिवलिंग

 संतोष नैयर जी मुझे शहर के ऐतिहासिक - सांस्कृतिक जगहों के बारे में बात करते हुए ब्रहमपुत्र नदी के तट पर बना हुआ कला गुरु के समाधि स्थल पर ले गए ।यह समाधि स्थल एक महान अभिनेता, चित्रकार, संगीतकार, कवि,नाटककार, लेखक और समाज सुधारक विष्णु प्रसाद राभा जी का है। इन्हें प्यार से कला गुरु कहा जाता था। इतना देखते देखते हैं अब शाम हो चुका था ।

कला गुरु समाधि स्थल






नेयर साहब मुझे कुछ एतिहासिक महत्व के स्थलो जैसे - भैरवी मंदिर , अग्नीगढ़ , चित्रलेखा उद्यान ,गणेश घाट , जहाज घाट के बारे बात करते हुए मेरे होटल तक छोड़ दिए।
 मै आपको छोड देता हूँ कुछ चित्रो के साथ । अगले भाग मे मै इन सब के बारे मे अपनी नजरिया के साथ मिलूँगा।
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Monday 2 January 2017

अहोम साम्राज्य की राजधानी (शिवसागर, असम)


शिवमंदिर (शिबदोल)

रंग घर के सामने खुला मैदान

रंग घर की उपरी मंजिल पर जाने के लिए सीढियाँ

रंग घर 
शिवसागर का पुराना नाम रंगपुर था जो मध्यकाल में अहोम राजाओं का राजधानी था । वर्तमान में यह शहर अपने ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है। असम के इतिहास को देखने व समझने के लिए यह शहर महत्वपूर्ण है । मुझे भी इन सब के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी। मुझे कम से कम एक साथी के साथ घुमना अच्छा लगता है।तो मेरे इस यात्रा के साथी है सुशान्त राजपूत।
          शहर के केंद्र में स्थित एक बड़ा सा तालाब जिसे असमिया भाषा में बोड़ पोखरी कहा जाता है । इसी से इस शहर का नाम शिव सागर पड़ा। यह तलाब आकर्षण का केंद्र इसलिए है कि यह शहर की ऊंचाई से इसकी ऊंचाई अधिक है। इसी के तट पर तीन मंदिर बने हैं एक शिव मंदिर ,दूसरा देवी मंदिर और तीसरा विष्णु मंदिर। असमिया भाषा में मंदिर को दोल कहा जाता है।  अतः इसे स्थानीय भाषा में शिवदोल कहा जाता है। इन मंदिरों का निर्माण सन 1734 ईस्वी में रानी अंबिका पति स्वर्गदेव शिव सिंह ने करवाई थी। (असमिया भाषा में राजा को स्वर्ग देव कहा जाता है।) इस शिव मंदिर की ऊंचाई 104 फीट है । इस मंदिर के बाहरी भित्तियो में सुंदर कलाकृति उकेरी गई है। और  मंदिर प्रांगण सुंदर बगीचा की तरह सजाया गया है। जो बहुत ही मनमोहक है ।मैं मंदिर में गया हाथ जोड़कर शिव जी को प्रणाम किया। मंदिर प्रांगण में निकलकर आस-पास के दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया। मंदिर प्रांगण में चारों तरफ भ्रमण करने के बाद हम लोग वहां से निकले और रंग घर की ओर रवाना हो गए ।
        रंग घर एशिया का सबसे पुराना पैवेलियन (स्टेडियम) है। यह शिवसागर से मात्र 3-4 किलोमीटर जोरहट की ओर आसाम ट्रंक रोड (Assam Trunk Road) में स्थित है। जहां हम लोग आसानी से शेयर टैक्सी से पहुंच गए। यह स्थान भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। हम लोग इसके टिकट काउंटर से 20 ₹ के टिकट लिये और अंदर प्रवेश किए। यहां पर अहोम राजा सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेल कूद (भैंसों की लड़ाई) करवाया करते थे। यह एक बड़ा सा खुला मैदान है और मैदान के अंतिम छोर में एक दो मंजिला भवन है । जो एक पैवेलियन है। यह भवन एक विशेष प्रकार की चिकनी लाल रंग का एक प्रकार का सीमेंट और पत्थरों से बना है। इस भवन मे बड़े झरोखें बने है जिससे सामने मैदान मे हो रहे कार्यक्रम को देख सके। भवन के ऊपरी मंजिल पर चढ़कर आसपास के दृश्यो को कैमरे से कैद किये और खुद कैमरे में कैद हुए। देख कर जब मन तृप्त हुआ तो पेट की भूख जाग चुकी थी और अब इसकी तृप्ति के लिए हम लोग शहर एक होटल में आसामीस थाली खाया । खाकर जब हम लोग तृप्त हुए तब तक दोपहर के 3:00 बज चुके थे । और अब हमारा मंजिल था अहोम राजाओं का राजमहल महल करैंग घर ।(असमिया भाषा मे राज महल को करैंग घर कहा जाता है)।
      शहर से लगभग 9-10 किलोमीटर दूर सिमलगुड़ी रेलवे स्टेशन की ओर है। शिव सागर शहर से हर समय शेयर टैक्सी यहां आने के लिए उपलब्ध रहती है। तो हम लोग बहुत आसानी से  अहोम राजाओं का राजमहल करैंग घर पहुंच गए। पहुंचते-पहुंचते सूरज अपने अंतिम किरने धरा पर बिखेर रहे थे। यह स्थान भी भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है तो यहां भी हम लोग को टिकट लेकर प्रवेश करना पड़ा। यह एक चार मंजिला भवन है इसका निर्माण भी बड़े-बड़े पत्थरों और लाल रंग की सीमेंट से हुआ है। इस महल का निर्माण सन 1751 -52 में अहोम राजा राजेश्वर सिंह ने करवाया था। हम लोगों ने जब महल में प्रवेश की है तब तक सूरज ढल चुका था फटा-फट हम लोगों ने कैमरे से महल और आसपास के दृश्य को कैद किए महल के सकरी सकरी सीढ़ियों से होते हुए हम लोग सबसे ऊपर शिखर पर पहुंचे। यह शिखर सुरक्षा के लिए यहां पर रक्षक खड़े होकर महल के चारों ओर  निगरानी करते होंगे। महल की दीवारें लाल रंग की ईंटो से बनी हुई है। अब तक शाम हो चुकी थी तो हम लोग वहां से बाहर निकले और  और वापसी की तैयारी करने लगे ।अंधेरा हो जाने के कारण हम लोगों ने अहोम साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण वास्तुकला तलातल घर देखने से वंचित रह गए। फिर कभी समय निकालकर इसको देखने की इच्छा है। यहां से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर सीमलगुडी रेलवे स्टेशन है। यहीं से हम लोग को रात के 7:00 बजे इंटरसिटी ट्रेन पकड़नी थी।
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करैंग घर (राज महल) 

करैंग घर के गलियारे

करैंग घर की सकरी - सकरी सीढियाँ



करैंग घर सामने से 

रंग घर (पैवेलियन) के सामने खुला मैदान 
रंग घर का पूर्वी द्वार
करैंग घर मे मेरे साथी सुशान्त
यहाँ कभी भैसो का खेल होता था आज उनकी याद मे मूर्तियाँ 
मै और मेरे साथी

करैंग घर के सीढियाँ
करैंग घर दुसरे कोण से