25 दिसंबर 2016 ( तेजपुर)
24 -25 दिसम्बर 2016 को ओरछा (मध्य प्रदेश) में घुमक्कड़ों का एक मिलन समारोह था । वहां जाने की तैयारी मैंने भी की थी। लेकिन मेरे पास छुट्टियों की कुछ कमी पड़ गई , जिसके कारण मैं जा ना सका । ओरछा घुमक्कड़ी मिलन के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप
मुकेश पांडे जी का ब्लॉग
यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं ।ओरछा घुमक्कड़ी मिलन के बारे में वहाँ आये ब्लाॅगर
डॉक्टर सुमित शर्मा ,
श्री हरेन्द्र धर्रा ने भी लिखा है । ओरछा ना जाने का मलाल हमें भी था। उसी मलाल को कम करने के लिए मैं कहीं कोई असम का अनछुआ - अनदेखा जगहों को देख लेना चाहता था । बहुत सोच - विचार करने के बाद मुझे एक मित्र मिला -संतोष नायर जी ।जो असम के तेजपुर शहर में रहते हैं और मैंने तेजपुर घुमने का मन बनाया।
ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर छोटे-छोटे पहाड़ी नुमा पर बसा एक ऐतिहासिक शहर है। इस शहर का संबंध द्वापर युग के बाणासुर से माना जाता है और वर्तमान मे असम का कला केन्द्र के लिए जाना जाता है। इस शहर के लगभग हर छोटे-बड़े देवस्थान और दर्शनीय जगहो से संबंधित पौराणिक कथा प्रचलित है ।उनमें से कुछ मुख्य जगहों को देखने मैं भी गया। मैं गोलाघाट से लगभग 5 घंटे बस द्वारा यात्रा करने के बाद तेजपुर पहुंचा । हमारी बस नुमालीगढ़, बोकाखाट, काजीरंग के कोहोरा रेन्ज, कलियाबोर होते हुए दोपहर के 02:00 तेजपुर पहुँचाया।रास्ते मे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान(एक सिंग वाले गैन्डा के लिए विश्व प्रसिद्ध है) के कोहोरा रेन्ज के मुख्य प्रवेश द्वार भी मिला । वहाँ आस पास बहुत होम स्टे, गेस्ट हाऊस , होटल दिख रहा था ।जानवर प्रेमी पर्यटक जानवरो को देखने लिए सुरज निकलने के पहले ही सफारी से जंगल की सैर करते है ताकी जानवरो से भेट हो सके । इसीलिए प्रवेश द्वार के आस पास जंगल मे सड़क किनारे बहुत से होटल वगैरह है ।मै तो फिर कभी जंगल और उनके प्राणियो को देखने का विचार मन मे करते हुए बस से गुजर रहे थे।
तेजपुर पहुंचते ही मैंने होटल में एक कमरा लिया और खाना खाने के बाद घूमने के लिए तैयार हुआ ही था कि मेरे मित्र संतोष नैयर जी अपने चार पहिया वाहन लेकर मेरे होटल पहुंचे । संतोष नैयर जी बहुत जिंदादिल इंसान हैं। वह मुझसे बहुत गर्मजोशी के साथ मिले, ऐसा लगा ही नहीं कि जिंदगी में हम लोग पहली बार मिल रहे हैं ।बातचित मे समय गवाँये बगैर मैंने अपना कैमरा उठाया और शहर भ्रमण के लिए निकल गए । हम लोग शहर के उत्तरी छोर पर स्थित महा भैरव मंदिर पहुंचे। यह मंदिर द्वापर युग के श्री कृष्ण के समकालीन बाणासुर द्वारा स्थापित है। यह मंदिर प्राचीन समय में पत्थरो द्वारा निर्मित था लेकिन विध्वसंको द्वार ध्वस्त कर देने के बाद वर्तमान समय मे कंक्रीट से बना हुआ है । इस मंदिर का शिवलिंग का पत्थर एक जीवित पत्थर है जो साल दर साल बढ़ती है और यह लगभग जितने भी शिव मंदिर में शिवलिंग स्थापित है उनमें से सबसे बड़ा शिवलिंग है । भ्रमण के दौरान संतोष नैयर जी ने "तेजपुर नाम कैसे पड़ा ?" बहुत रोचक जानकारी दी ।उन्होने मुझे बताते हुए कहा । यहाँ का राजा महाराज बलि का पुत्र बाणासूर था। (बलि जिन्होने भगवान के बामन अवतार को तीन पग दान के रूप मे पूरा संसार दान दे दिया था) ।बाणासूर शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था।उसका एक सुन्दर पुत्री थी उषा। जिसे सपने मे एक सुन्दर युवक से प्रेम हो गया था और वह युवक श्रीकृष्ण का पोता अनिरूद्ध था। उषा की एक सखी चित्रलेखा बहुत बड़ी चित्रकार और माया शक्ति के जानकार थी । चित्रलेखा उषा के लिए रात रातो अनिरूद्ध का अपहरण कर उषा के लिए ले आयी।जब बाणासूर को पता चला कि उसकी पुत्री कृष्ण के पोते से विवाह करना चाहती है तो वह क्रोधित हो गये । श्रीकृष्ण उसके मित्र कंस और जरासंघ का शत्रु था वह भी अपना शत्रु मानता था। उषा को अग्निगढ़ (अर्थात् ऐसा किला जिसके चारो ओर आग का घेरा हो जिसके अन्दर से बाहर न कोई आ सकता है और न बाहर से अन्दर कोई प्रवेश कर सकता है ) मे बन्धी बना दिया और अनिरूद्ध को भी कारावास मे डाल दिया।। आनिरूद्ध को छुड़ाने के लिए श्रीकृष्ण की सेना और शिव जी (बाणसूर को सुरक्षा का वरदान दिया था) व बाणासूर की सेना मे भीषण युद्ध हुआ था । जिसके कारण लहू से धरती लाल हो गयी थी । इसलिए सोनितपुर सोनित (लहू को संस्कृत मे सोनित कहा जाता है) + पुर (नगर) नाम पड़ा ।स्थानिय भाषा मे लहू(खून) को तेज भी कहा जाता है अतः शहर का नाम तेजपुर हो गया।
इन जगहों को अपने यादों में सजोने के लिए मैंने अपने कैमरे से यहां के कुछ तस्वीरें कैद किया ।
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संतोष नैयर जी के साथ
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महाभैरव मंदिर का प्रवेश द्वार |
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महाभैरव मंदिर प्रांगण |
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महाभैरव मंदिर मे शिवलिंग |
संतोष नैयर जी मुझे शहर के ऐतिहासिक - सांस्कृतिक जगहों के बारे में बात करते हुए ब्रहमपुत्र नदी के तट पर बना हुआ कला गुरु के समाधि स्थल पर ले गए ।यह समाधि स्थल एक महान अभिनेता, चित्रकार, संगीतकार, कवि,नाटककार, लेखक और समाज सुधारक विष्णु प्रसाद राभा जी का है। इन्हें प्यार से कला गुरु कहा जाता था। इतना देखते देखते हैं अब शाम हो चुका था ।
कला गुरु समाधि स्थल
नेयर साहब मुझे कुछ एतिहासिक महत्व के स्थलो जैसे - भैरवी मंदिर , अग्नीगढ़ , चित्रलेखा उद्यान ,गणेश घाट , जहाज घाट के बारे बात करते हुए मेरे होटल तक छोड़ दिए।
मै आपको छोड देता हूँ कुछ चित्रो के साथ । अगले भाग मे मै इन सब के बारे मे अपनी नजरिया के साथ मिलूँगा।
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