शिवमंदिर (शिबदोल)
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रंग घर के सामने खुला मैदान |
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रंग घर की उपरी मंजिल पर जाने के लिए सीढियाँ |
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रंग घर |
शिवसागर का पुराना नाम
रंगपुर था जो मध्यकाल में अहोम राजाओं का राजधानी था । वर्तमान में यह शहर अपने ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है। असम के इतिहास को देखने व समझने के लिए यह शहर महत्वपूर्ण है । मुझे भी इन सब के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी। मुझे कम से कम एक साथी के साथ घुमना अच्छा लगता है।तो मेरे इस यात्रा के साथी है सुशान्त राजपूत।
शहर के केंद्र में स्थित एक बड़ा सा तालाब जिसे असमिया भाषा में बोड़ पोखरी कहा जाता है । इसी से इस शहर का नाम शिव सागर पड़ा। यह तलाब आकर्षण का केंद्र इसलिए है कि यह शहर की ऊंचाई से इसकी ऊंचाई अधिक है। इसी के तट पर तीन मंदिर बने हैं एक शिव मंदिर ,दूसरा देवी मंदिर और तीसरा विष्णु मंदिर। असमिया भाषा में मंदिर को दोल कहा जाता है। अतः इसे स्थानीय भाषा में शिवदोल कहा जाता है। इन मंदिरों का निर्माण सन 1734 ईस्वी में रानी अंबिका पति स्वर्गदेव शिव सिंह ने करवाई थी। (असमिया भाषा में राजा को स्वर्ग देव कहा जाता है।) इस शिव मंदिर की ऊंचाई 104 फीट है । इस मंदिर के बाहरी भित्तियो में सुंदर कलाकृति उकेरी गई है। और मंदिर प्रांगण सुंदर बगीचा की तरह सजाया गया है। जो बहुत ही मनमोहक है ।मैं मंदिर में गया हाथ जोड़कर शिव जी को प्रणाम किया। मंदिर प्रांगण में निकलकर आस-पास के दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया। मंदिर प्रांगण में चारों तरफ भ्रमण करने के बाद हम लोग वहां से निकले और रंग घर की ओर रवाना हो गए ।
रंग घर एशिया का सबसे पुराना पैवेलियन (स्टेडियम) है। यह शिवसागर से मात्र 3-4 किलोमीटर जोरहट की ओर आसाम ट्रंक रोड (Assam Trunk Road) में स्थित है। जहां हम लोग आसानी से शेयर टैक्सी से पहुंच गए। यह स्थान भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। हम लोग इसके टिकट काउंटर से 20 ₹ के टिकट लिये और अंदर प्रवेश किए। यहां पर अहोम राजा सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेल कूद (भैंसों की लड़ाई) करवाया करते थे। यह एक बड़ा सा खुला मैदान है और मैदान के अंतिम छोर में एक दो मंजिला भवन है । जो एक पैवेलियन है। यह भवन एक विशेष प्रकार की चिकनी लाल रंग का एक प्रकार का सीमेंट और पत्थरों से बना है। इस भवन मे बड़े झरोखें बने है जिससे सामने मैदान मे हो रहे कार्यक्रम को देख सके। भवन के ऊपरी मंजिल पर चढ़कर आसपास के दृश्यो को कैमरे से कैद किये और खुद कैमरे में कैद हुए। देख कर जब मन तृप्त हुआ तो पेट की भूख जाग चुकी थी और अब इसकी तृप्ति के लिए हम लोग शहर एक होटल में आसामीस थाली खाया । खाकर जब हम लोग तृप्त हुए तब तक दोपहर के 3:00 बज चुके थे । और अब हमारा मंजिल था अहोम राजाओं का राजमहल महल
करैंग घर ।(असमिया भाषा मे राज महल को करैंग घर कहा जाता है)।
शहर से लगभग 9-10 किलोमीटर दूर सिमलगुड़ी रेलवे स्टेशन की ओर है। शिव सागर शहर से हर समय शेयर टैक्सी यहां आने के लिए उपलब्ध रहती है। तो हम लोग बहुत आसानी से अहोम राजाओं का राजमहल करैंग घर पहुंच गए। पहुंचते-पहुंचते सूरज अपने अंतिम किरने धरा पर बिखेर रहे थे। यह स्थान भी भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है तो यहां भी हम लोग को टिकट लेकर प्रवेश करना पड़ा। यह एक चार मंजिला भवन है इसका निर्माण भी बड़े-बड़े पत्थरों और लाल रंग की सीमेंट से हुआ है। इस महल का निर्माण सन 1751 -52 में अहोम राजा राजेश्वर सिंह ने करवाया था। हम लोगों ने जब महल में प्रवेश की है तब तक सूरज ढल चुका था फटा-फट हम लोगों ने कैमरे से महल और आसपास के दृश्य को कैद किए महल के सकरी सकरी सीढ़ियों से होते हुए हम लोग सबसे ऊपर शिखर पर पहुंचे। यह शिखर सुरक्षा के लिए यहां पर रक्षक खड़े होकर महल के चारों ओर निगरानी करते होंगे। महल की दीवारें लाल रंग की ईंटो से बनी हुई है। अब तक शाम हो चुकी थी तो हम लोग वहां से बाहर निकले और और वापसी की तैयारी करने लगे ।अंधेरा हो जाने के कारण हम लोगों ने अहोम साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण वास्तुकला तलातल घर देखने से वंचित रह गए। फिर कभी समय निकालकर इसको देखने की इच्छा है। यहां से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर सीमलगुडी रेलवे स्टेशन है। यहीं से हम लोग को रात के 7:00 बजे इंटरसिटी ट्रेन पकड़नी थी।
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करैंग घर (राज महल) |
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करैंग घर के गलियारे |
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करैंग घर की सकरी - सकरी सीढियाँ |
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करैंग घर सामने से |
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रंग घर (पैवेलियन) के सामने खुला मैदान |
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रंग घर का पूर्वी द्वार |
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करैंग घर मे मेरे साथी सुशान्त |
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यहाँ कभी भैसो का खेल होता था आज उनकी याद मे मूर्तियाँ |
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मै और मेरे साथी |
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करैंग घर के सीढियाँ |
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करैंग घर दुसरे कोण से
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