आपने पिछले लेखो मे मेरा असम पहुँचना और वहाँ की इतिहास को पढ़ा।यात्रा के दौरान गुवाहाटी मे एक सज्जन हमारे ट्रेन पर सवार हुए जो खादी एवं ग्राम उद्योग विभाग मे एक अधिकारी है।उन्होने मुझे असम के जन- जीवन और संस्कृति पर बहुत जानकारी साझा किए।जिसे मै वहाँ पहुँचकर स्वयं देखा और समझा। अब आप देखिए उनके नजर से असम की जन जीवन और संस्कृति की एक झलख।
शेष भारत की तरह यहाँ के भी अधिकांश लोगो का आजीविका का मुख्य स्त्रोत कृषि हैं। एक चीज अलग है वो है चाय की बागवानी।जो यहाँ के लोगो का नगद आय का मुख्य स्त्रोत है। अधिकांश चाय का बड़े-बड़े बगान ब्रिटिश काल से है उनमें से बहुत से बगान पर हिन्दुस्तान युनिलीवर, टाटा और ITC जैसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अधिकिर है। कुछ बगानों पर स्थानीय सहकारी समिति का अधिकार है । आज़ादी के बाद भारत सरकार ने निजी जमीन पर बगान लगवाने मे सहयोग देकर किसानो की आय वृद्धी करने मे मदद किया।
पूरे भारत वर्ष मे एक चीज मुझे बहुत प्रभावित करता है। वो है भारतीय महिला अपनी संस्कृति से कोई समझौता नहीं करना।वर्तमान समय मे जहाँ पुरूष अपने परिधान को पूरी तरह से पश्चिमीकरण कर दिया हैं वही महिलाए पूर्ण स्वदेशी एवं पारम्पारिक परिधान धारण करना पसंद करती हैं।यहाँ की महिलाओ की पारम्पारिक परिधान हैं - मेखला चादर। एक अधोवस्त्र जो एक लहंगा की तरह ही होता है पर बनावट मे बहुत अन्तर होता है, मेखला कहते है और दुसरा चादर जिसे उपर पहना जाता है ।इसमे सबसे ख़ास बात है इसे अधिकांश महिलाऐ अपने हाथो से अपने हथ-करघे के द्वारा स्वयं बुनती हैं।
असम का मुख्य त्योहार बीहू हैं । तीन अलग अलग समय पर अलग -अलग तरह से मनाते हैं।
(1) कंगाली बीहू - इसे काति बीहू भी कहा जाता है क्योकि इसे असमिया काति माह (हिन्दी कार्तिक माह) अक्टूबर मे मनाया जाता है। वर्ष के इस माह मे सभी का अनाज भण्डार खाली हो जाता है।धान की फसल खेतो मे बढ रहा होता है।इसिलिए इसे कंगाली बीहू कहा जाता है ।यहाँ के लोग घर - आंगन मे तुलसी के पौधे के पास और धान के खेतो मे दिया जलाकर पुजा करते हैं और भगवान से प्रथना करते है कि उनके फसल की रक्षा करें।
(2) भोगाली बीहू - इसे माघ बीहू भी कहा जाता है क्योकि इसे माघ महिने (मध्य जनवरी) मे मनाया जाता है।जब उत्तर भारत मे मकर संक्राति मनाते है ।इस समय फसल की कटाई होती है , सभी के घरो मे नया अनाज आता है। इसके खूशी मे तरह-तरह के पकवान बनाया जाता है और एक दुसरे को बाँटते है । इसलिए इसे भोगाली बीहू कहा जाता है।
(3) रंगोली बीहू - यह सबसे मुख्य त्योहार है । यहा के लोग नृत्य संगीत का सबसे रंगीन उत्सव रंगोली बीहू (बोहाग बीहू) मे पूरे जोश उल्लास के साथ भाग लेते है।
रंगोली बीहू असमिया नव वर्ष के प्रारम्भ होने के उपलक्ष्य मे मनाया जाता है। नव वर्ष चैत्र माह का प्रथम दिन से आरम्भ होता है। रंगोली बीहू का प्रथम दिन गायो को अर्पित है ।इसे गोरू बीहू कहा जाता है।
यहा के लोग विशेषतः किसान वर्ग अपने गायो को नदियो ,तालाबो अथवा झीलो मे ले जाकर एक समारोह की तरह हल्दी का लेप व अन्य वस्तुओ से नहाते धोते है। गायो को नई रस्सी (पगा) से बांध कर बैगन व लौकी (कद्दू) खिलाते है।
रंगोली बीहू उत्सव कम से कम एक सप्ताह और कही कही पूरा महीना तक चलता रहता है।
ये लोग नई नई कपडे पहनते है । पुरूष कुर्ता , धोती और असमिया गमछा गले अथवा सिर पर बांधते है। महिलाए सुनहरे रंग की मूंगा रेशम की साड़ी धारण करती है।
युवा और बच्चे परिवार के बड़े बुजुर्गो से आर्शिवाद लेते है ताकि नव वर्ष खुशहाली समृध्दी स्वाथ्य भाग्यशाली हो। समूह बनाकर नृत्य संगीत करते है और पूरे राज्य मे अलग अलग जगहो पर नृत्य संगीत का प्रतियोगिता आयोजित किया जाता है।
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शेष भारत की तरह यहाँ के भी अधिकांश लोगो का आजीविका का मुख्य स्त्रोत कृषि हैं। एक चीज अलग है वो है चाय की बागवानी।जो यहाँ के लोगो का नगद आय का मुख्य स्त्रोत है। अधिकांश चाय का बड़े-बड़े बगान ब्रिटिश काल से है उनमें से बहुत से बगान पर हिन्दुस्तान युनिलीवर, टाटा और ITC जैसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अधिकिर है। कुछ बगानों पर स्थानीय सहकारी समिति का अधिकार है । आज़ादी के बाद भारत सरकार ने निजी जमीन पर बगान लगवाने मे सहयोग देकर किसानो की आय वृद्धी करने मे मदद किया।
एक चाय का बगान |
पूरे भारत वर्ष मे एक चीज मुझे बहुत प्रभावित करता है। वो है भारतीय महिला अपनी संस्कृति से कोई समझौता नहीं करना।वर्तमान समय मे जहाँ पुरूष अपने परिधान को पूरी तरह से पश्चिमीकरण कर दिया हैं वही महिलाए पूर्ण स्वदेशी एवं पारम्पारिक परिधान धारण करना पसंद करती हैं।यहाँ की महिलाओ की पारम्पारिक परिधान हैं - मेखला चादर। एक अधोवस्त्र जो एक लहंगा की तरह ही होता है पर बनावट मे बहुत अन्तर होता है, मेखला कहते है और दुसरा चादर जिसे उपर पहना जाता है ।इसमे सबसे ख़ास बात है इसे अधिकांश महिलाऐ अपने हाथो से अपने हथ-करघे के द्वारा स्वयं बुनती हैं।
असम का मुख्य त्योहार बीहू हैं । तीन अलग अलग समय पर अलग -अलग तरह से मनाते हैं।
(1) कंगाली बीहू - इसे काति बीहू भी कहा जाता है क्योकि इसे असमिया काति माह (हिन्दी कार्तिक माह) अक्टूबर मे मनाया जाता है। वर्ष के इस माह मे सभी का अनाज भण्डार खाली हो जाता है।धान की फसल खेतो मे बढ रहा होता है।इसिलिए इसे कंगाली बीहू कहा जाता है ।यहाँ के लोग घर - आंगन मे तुलसी के पौधे के पास और धान के खेतो मे दिया जलाकर पुजा करते हैं और भगवान से प्रथना करते है कि उनके फसल की रक्षा करें।
खेत मे दिया जलाकर पुजा करते हुए। |
(2) भोगाली बीहू - इसे माघ बीहू भी कहा जाता है क्योकि इसे माघ महिने (मध्य जनवरी) मे मनाया जाता है।जब उत्तर भारत मे मकर संक्राति मनाते है ।इस समय फसल की कटाई होती है , सभी के घरो मे नया अनाज आता है। इसके खूशी मे तरह-तरह के पकवान बनाया जाता है और एक दुसरे को बाँटते है । इसलिए इसे भोगाली बीहू कहा जाता है।
असमिया पकवान |
(3) रंगोली बीहू - यह सबसे मुख्य त्योहार है । यहा के लोग नृत्य संगीत का सबसे रंगीन उत्सव रंगोली बीहू (बोहाग बीहू) मे पूरे जोश उल्लास के साथ भाग लेते है।
रंगोली बीहू असमिया नव वर्ष के प्रारम्भ होने के उपलक्ष्य मे मनाया जाता है। नव वर्ष चैत्र माह का प्रथम दिन से आरम्भ होता है। रंगोली बीहू का प्रथम दिन गायो को अर्पित है ।इसे गोरू बीहू कहा जाता है।
यहा के लोग विशेषतः किसान वर्ग अपने गायो को नदियो ,तालाबो अथवा झीलो मे ले जाकर एक समारोह की तरह हल्दी का लेप व अन्य वस्तुओ से नहाते धोते है। गायो को नई रस्सी (पगा) से बांध कर बैगन व लौकी (कद्दू) खिलाते है।
अपने गौरू (गाय -बैल) को नहलाते हुए किसान |
ये लोग नई नई कपडे पहनते है । पुरूष कुर्ता , धोती और असमिया गमछा गले अथवा सिर पर बांधते है। महिलाए सुनहरे रंग की मूंगा रेशम की साड़ी धारण करती है।
युवा और बच्चे परिवार के बड़े बुजुर्गो से आर्शिवाद लेते है ताकि नव वर्ष खुशहाली समृध्दी स्वाथ्य भाग्यशाली हो। समूह बनाकर नृत्य संगीत करते है और पूरे राज्य मे अलग अलग जगहो पर नृत्य संगीत का प्रतियोगिता आयोजित किया जाता है।
पारम्पारिक वस्त्र धारण की हुई परि |
एक और परि |
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