हमेशा से अठखेलिया नामघर असम के धार्मिक लोगो के हृदय मे महत्वपूर्ण स्थान है । अठखेलिया नामघर असम राज्य के गोलाघाट जिला से 20 किमी• की दूरी पर स्थित है।जो आसामियां रीति रिवाज को नही जानते है उनके लिए नामघर क्या है नही समझ पायेगें ।तो इतना जान लिजिए नामघर और मंदिर मिलता जुलता स्थल है । अन्तर सिर्फ इतना है कि मंदिर मे मूर्ति पुजा होता है और नामघर मे नाम का ।अर्थात यहां पर भागवत पाठ किया जाता है । ऐसे तो लगभग असम के सभी गांवो मे नामघर मिल जाएगें जहां पर शाम को गांव के भक्त और बुजुर्ग नाम का गुणगान करते है ।
आइऐ इसके इतिहास पर एक नजर डालते है ।
किवंदति के अनुसार इसका काल 1670 से 1681 के बीच है ।जो अहोम साम्राज्य का सबसे कठिन समय था ।उस सम अहोम राज्य का राजा "लोरा रोजा" था ।राजा अपने सत्ता को सुरक्षित और कायम रखने के लिए अपने सभी राज कुमारो को अपंग बनाने का आदेश दे दिया ।ताकि कोई राज कुमार सिंहासन के लिए लडाई न कर सके।उन्ही राजकुमारो मे से एक राजकुमार था गदापाणी ।वह लोरा राजा के राज्य से भागकर नागा पहाड़ मे छिप गया था ।उस समय नागा पहाड़ के चारो ओर घरघोर जंगल था । उसी जंगल मे एक साधू तथा उनके कुछ चेला (सेवक) का आश्रम था ।इसी आश्रम मे वह राजकुमार बहुत दिनो तक आश्रय लिया । जहां आज आठखेलिया नामघर है ।1681 मे जब वह राजकुमार राजा बना तो उसे आश्रम मे बिताये दिन याद आये और वह ढूंढते हुऐ जंगल मे आये । लेकिन वहां पर उसे साधू तो नही मिला ।तो उन्होने उनके याद मे एक बड़ा सा नामघर का निर्माण करवाया ।
अहोम लोगो के गुरु शंकर महादेव है जो नाम की महिमा का पाठ करने का प्रथा का चलन किया था ।उन्ही के पुण्य तिथि भादो माह मे है । इसीलिए भाद्र माह मे आसम के कोने-कोने से धर्म परायण लोग यहां आते है ।दूर दराज से आने वालो के ठहरने के लिए यहां पर आज कल एक धर्मशाला भी है ।
मै भी बहुत दिनो से यहां जाने को सोच रखा था आज मुझे मौका मिला और झटपट मै भी इस नाम की महिमा देखने पहुंच गया ।
आइऐ इसके इतिहास पर एक नजर डालते है ।
किवंदति के अनुसार इसका काल 1670 से 1681 के बीच है ।जो अहोम साम्राज्य का सबसे कठिन समय था ।उस सम अहोम राज्य का राजा "लोरा रोजा" था ।राजा अपने सत्ता को सुरक्षित और कायम रखने के लिए अपने सभी राज कुमारो को अपंग बनाने का आदेश दे दिया ।ताकि कोई राज कुमार सिंहासन के लिए लडाई न कर सके।उन्ही राजकुमारो मे से एक राजकुमार था गदापाणी ।वह लोरा राजा के राज्य से भागकर नागा पहाड़ मे छिप गया था ।उस समय नागा पहाड़ के चारो ओर घरघोर जंगल था । उसी जंगल मे एक साधू तथा उनके कुछ चेला (सेवक) का आश्रम था ।इसी आश्रम मे वह राजकुमार बहुत दिनो तक आश्रय लिया । जहां आज आठखेलिया नामघर है ।1681 मे जब वह राजकुमार राजा बना तो उसे आश्रम मे बिताये दिन याद आये और वह ढूंढते हुऐ जंगल मे आये । लेकिन वहां पर उसे साधू तो नही मिला ।तो उन्होने उनके याद मे एक बड़ा सा नामघर का निर्माण करवाया ।
अहोम लोगो के गुरु शंकर महादेव है जो नाम की महिमा का पाठ करने का प्रथा का चलन किया था ।उन्ही के पुण्य तिथि भादो माह मे है । इसीलिए भाद्र माह मे आसम के कोने-कोने से धर्म परायण लोग यहां आते है ।दूर दराज से आने वालो के ठहरने के लिए यहां पर आज कल एक धर्मशाला भी है ।
मै भी बहुत दिनो से यहां जाने को सोच रखा था आज मुझे मौका मिला और झटपट मै भी इस नाम की महिमा देखने पहुंच गया ।
बढिया पोस्ट, संस्कृति चर्चा यात्रा वृतांत का मुख्य अंग होती है। शुभकामनाएँ नये ब्लाॅग के लिए।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद । सर जी!
ReplyDeleteमुझे आपका लेखनी बहुत प्रभावित करती है। आपका ब्लाॅग से एतिहासिक धरोहरो और उनका संस्कृति की भूख को काफी तृप्ती मिली हैं।
अब इसी तरह मुझे आप अपने आशिश देते रहिए ।
अठखेलिया नामघर गोलाघाट असम का जीवंत फोटोज के साथ सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबड़ी उत्सुकता होती है नयी नयी जगह के बारे में जानकार ..
This comment has been removed by the author.
Deleteमुझे खूशी हुआ कि आपने मेरा लेख को पढी और आपकी उत्सुकता इस प्रकार नयी जगहो के बारे मे जानने की । धन्यवाद ।
Deleteआपकी लेख मुझे बबुत अच्छा लगता है और कुछ लेख तो हृदय स्पर्शी है जिसे मै अपनी छोटी बहन को अक्सर साझा करता हूँ।