पिछला लेख मे आपने मेरे असम तक पहुचने का वृत्तांत पढा।कही कोई पर्यटक अथवा घुमक्कड़ जाता है तो मुख्यतः तीन चीज विचार करने योग्य होता है। वहां का भुगोल ,इतिहास और सामाजिक बनावट ।
आइऐ एक नजर असम के इतिहास पर डालते है ।
महाभारत काल मे इस भूभाग को "प्रागज्योतिष" के नाम से जाना जाता था।कहा जाता है कि यहां का राजा भागदत्त ने महाभारत युद्ध मे भाग लिया था।इसके बाद प्रचीन काल मे इस भू भाग को कामरूप के नाम से जाना गया ।तथा इसके बाद मध्य काल मे यह छोटे -छोटे क्षेत्र मे बट कर अलग -अलग शासको ने शासन किया।कामरूप साम्राज्य का पूर्वी क्षेत्र (ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण से मध्य असम) कचारी लोगो का शासन था।ब्रह्मपुत्र नदी से उत्तर और पूर्वी असम मे सूतिया लोगो का शासन था। और कुछ क्षेत्र सूतिया राज्य के पश्चिम मे भूईंया लोगो के नियंत्रण मे था। कचारी और सूतिया राज्य के मध्य के भू - भाग मे बर्मा प्रवासियो के नेता "सुकाफा " ने अहोम साम्राज्य की स्थापना किया। 16वीं शताब्दी मे अहोम साम्राज्य की विस्तारवादी नीति अपनाया। सूतिया राज्य के कुछ क्षेत्र को अपने मे मिलाकर उसे मध्य असम से पूर्व की ओर दबा दिया। और कोच राज्य (कचारी) के कुछ हिस्से को कब्जाकर उसे पश्चिम की ओर धकेल दिया। इस प्रकार अहोम साम्राज्य लगभग असम मे कायम हो गया।अहोम साम्राज्य मे ही श्रीमंत शंकरदेव ने एकशरण धर्म की स्थापना किया जो आज लगभग असम के सभी गांवो, कस्बों और शहरों मे स्थापित नामघर मे उनके रचे ग्रंथ को पूजा जाता है और पाठ किया जाता है। 1671 ई• मे अहोम-मुगल युद्ध जो सरायघाट का युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है ।यह युद्ध 1682 ई• मे मुगल के पराजय के बाद खत्म हुआ। 1824 ई•को आंग्लो - बर्मा युद्ध के बाद औपनवैशिक राज धीरे - धीरे असम मे कायम हुआ। आजादी के बाद 1979 ई• असम आन्दोलन All Assam Studen Union और All Assam Gana Sangram Parisad के नेतृत्व मे सरकार से गैर कानूनी ढंग से बंगलादेश से आये प्रविसियो को पहचान कर बाहर करने और नये प्रवासियो को आने से रोकने की मांग किया।आरम्भ मे यह आन्दोलन अहिंसक था लेकिन बाद मे यह बहुत हिंसक हो गया और नौगांव जिला मे लगभग 3000 ज्यादा (सरकारी आंकडा) वास्तव मे लगभग 10,000 लोगो ने अपनी जान गवाया।यह नरसंहार 1985 ई• मे आन्दोलन के नेता और भारत सरकार के बीच "असम समझौता" होने के बाद बन्द हुआ। और यह संगठन एक राजनीति पार्टी मे तब्दील हो कर 1985 ई• के असम विधान सभा चुनाव मे बहुमत मे आई ।
काग्रेस के नेता अपनी सत्ता को पाने के लिए यानी कि एक भोट बैंक बनाने के लिए घुसपैठ और गैरकानूनी बंगालादेसी प्रवासियो को बाहर करने मे कोई ठोस कदम नही उठाया । जिससे यहाँ के निराश लोगो ने एक संगठन बनाया ULFA United Libration front of Assam ।जो सरकार और देश के खिलाफ हथियार उठा लिया ।धीरे धीरे म्यानमार के एक उग्रवादी संगठन से मिलकर यह दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन बन गया ।इसका मूल लक्ष्य था घुसपैठ को रोकना और प्रविसी बंगालदेशियो को भगाना के लिए सत्ता को हथियार के बल पर पाना। आरम्भ मे इसे जनता का सपोर्ट था । इनके नेता पुलिस से बचने के लिए बंगाल देश मे शरण लेते थे , धीरे धीरे इसका लक्ष्य बंगालादेसी प्रवासियो के मुदा कमजोर कर सिर्फ देश से अलग सत्ता पाने लिए हो गया । जिससे जनता का सपोर्ट कम हो गया ।और लगभग 2009 तक भारतीय सेना के ऑपरेशन के बाद यह संगठन खत्म हो गया । अब इस संगठन के नाम पर कुछ लोग फिरोती लेता है । और इस प्रकार छिटपुट कभी कभी नजर आता है ।
अब इधर बाहरी लोग बिन्दास होकर घूमने आ सकते है ।यहाँ बहुत से प्रकृतिक और एतिहासिक धरोधर है ।
तो मै भी अगले लेख मे चलूंगा अहोम साम्राज्य की राजधानी और वर्तमान असम की सांस्कृतिक राजधानी शिवसागर , यहाँ के एतिहासिक धरोधर को देखने । असम के विरासत और संस्कृति को मेरे नजर से देखने के लिए हमारे साथ बन रहिऐ। धन्यवाद !
आइऐ एक नजर असम के इतिहास पर डालते है ।
महाभारत काल मे इस भूभाग को "प्रागज्योतिष" के नाम से जाना जाता था।कहा जाता है कि यहां का राजा भागदत्त ने महाभारत युद्ध मे भाग लिया था।इसके बाद प्रचीन काल मे इस भू भाग को कामरूप के नाम से जाना गया ।तथा इसके बाद मध्य काल मे यह छोटे -छोटे क्षेत्र मे बट कर अलग -अलग शासको ने शासन किया।कामरूप साम्राज्य का पूर्वी क्षेत्र (ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण से मध्य असम) कचारी लोगो का शासन था।ब्रह्मपुत्र नदी से उत्तर और पूर्वी असम मे सूतिया लोगो का शासन था। और कुछ क्षेत्र सूतिया राज्य के पश्चिम मे भूईंया लोगो के नियंत्रण मे था। कचारी और सूतिया राज्य के मध्य के भू - भाग मे बर्मा प्रवासियो के नेता "सुकाफा " ने अहोम साम्राज्य की स्थापना किया। 16वीं शताब्दी मे अहोम साम्राज्य की विस्तारवादी नीति अपनाया। सूतिया राज्य के कुछ क्षेत्र को अपने मे मिलाकर उसे मध्य असम से पूर्व की ओर दबा दिया। और कोच राज्य (कचारी) के कुछ हिस्से को कब्जाकर उसे पश्चिम की ओर धकेल दिया। इस प्रकार अहोम साम्राज्य लगभग असम मे कायम हो गया।अहोम साम्राज्य मे ही श्रीमंत शंकरदेव ने एकशरण धर्म की स्थापना किया जो आज लगभग असम के सभी गांवो, कस्बों और शहरों मे स्थापित नामघर मे उनके रचे ग्रंथ को पूजा जाता है और पाठ किया जाता है। 1671 ई• मे अहोम-मुगल युद्ध जो सरायघाट का युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है ।यह युद्ध 1682 ई• मे मुगल के पराजय के बाद खत्म हुआ। 1824 ई•को आंग्लो - बर्मा युद्ध के बाद औपनवैशिक राज धीरे - धीरे असम मे कायम हुआ। आजादी के बाद 1979 ई• असम आन्दोलन All Assam Studen Union और All Assam Gana Sangram Parisad के नेतृत्व मे सरकार से गैर कानूनी ढंग से बंगलादेश से आये प्रविसियो को पहचान कर बाहर करने और नये प्रवासियो को आने से रोकने की मांग किया।आरम्भ मे यह आन्दोलन अहिंसक था लेकिन बाद मे यह बहुत हिंसक हो गया और नौगांव जिला मे लगभग 3000 ज्यादा (सरकारी आंकडा) वास्तव मे लगभग 10,000 लोगो ने अपनी जान गवाया।यह नरसंहार 1985 ई• मे आन्दोलन के नेता और भारत सरकार के बीच "असम समझौता" होने के बाद बन्द हुआ। और यह संगठन एक राजनीति पार्टी मे तब्दील हो कर 1985 ई• के असम विधान सभा चुनाव मे बहुमत मे आई ।
काग्रेस के नेता अपनी सत्ता को पाने के लिए यानी कि एक भोट बैंक बनाने के लिए घुसपैठ और गैरकानूनी बंगालादेसी प्रवासियो को बाहर करने मे कोई ठोस कदम नही उठाया । जिससे यहाँ के निराश लोगो ने एक संगठन बनाया ULFA United Libration front of Assam ।जो सरकार और देश के खिलाफ हथियार उठा लिया ।धीरे धीरे म्यानमार के एक उग्रवादी संगठन से मिलकर यह दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन बन गया ।इसका मूल लक्ष्य था घुसपैठ को रोकना और प्रविसी बंगालदेशियो को भगाना के लिए सत्ता को हथियार के बल पर पाना। आरम्भ मे इसे जनता का सपोर्ट था । इनके नेता पुलिस से बचने के लिए बंगाल देश मे शरण लेते थे , धीरे धीरे इसका लक्ष्य बंगालादेसी प्रवासियो के मुदा कमजोर कर सिर्फ देश से अलग सत्ता पाने लिए हो गया । जिससे जनता का सपोर्ट कम हो गया ।और लगभग 2009 तक भारतीय सेना के ऑपरेशन के बाद यह संगठन खत्म हो गया । अब इस संगठन के नाम पर कुछ लोग फिरोती लेता है । और इस प्रकार छिटपुट कभी कभी नजर आता है ।
अब इधर बाहरी लोग बिन्दास होकर घूमने आ सकते है ।यहाँ बहुत से प्रकृतिक और एतिहासिक धरोधर है ।
तो मै भी अगले लेख मे चलूंगा अहोम साम्राज्य की राजधानी और वर्तमान असम की सांस्कृतिक राजधानी शिवसागर , यहाँ के एतिहासिक धरोधर को देखने । असम के विरासत और संस्कृति को मेरे नजर से देखने के लिए हमारे साथ बन रहिऐ। धन्यवाद !
यहाँ के राहो की खूबसूरती देखिए ।मुझे रूक रूक कर इन नजारो को कैद करने को मजबूर करता। |
बहुत अच्छी जानकारी मिले असम की संस्कृति और विरासत के बारे में ..
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deletebahut sundar likha hai aap ne AASAM ke ITIHAS ke bare me jankari prapt kar ke maa aaya.... dhanyawad...
ReplyDeleteआभार किशोर जी ।
Delete