Tuesday, 3 March 2020

जब कोई दूर देश से मित्र इधर हमारे पूर्वोत्तर भाग में आते हैं तो अपना दिल बाग-बाग हो जाता है।आज इंदौर के वासी पुराने ब्लॉगर मुकेश भालसे जी नुमालीगढ़ रिफायनरी में अपने काम से आए हैं। और शनिवार का फुर्सत का दिन का सबसे बढ़िया उपयोग उनके साथ आसपास घुमक्कड़ी करके बिताया। मध्य व उत्तर भारत से आने वालों के लिए यहां की हर चीज अनोखा दिखता है। सब उन्हें आकर्षित करता है ।भालसे जी के साथ इन सब चीजों को कम से कम समय में देखने की कोशिश में हम लोग नुमालीगढ़ के गेस्ट हाउस से निकल पड़े चाय बागानों को चीरते हुए बने हाईवे से काजीरंगा नेशनल पार्क व बायोडायवर्सिटी पार्क की ओर। रास्ते में असम की पूरी एक झलक मिल गया। जैसे चाय के बागान, चाय पत्तियां तोड़ती महिलाएं , सड़क किनारे फैली हरियाली और उसी हरियाली के बीच में छिटपुट बने छोटे-छोटे घर, यहां के वासियों के रहन-सहन, बोली चाली और संस्कृति बहुत आकर्षित करती है।जब हम पार्क में पहुंचे तो वहां पूर्वोत्तर के जंगलों से लाकर एक जगह पर एकत्रित किया हुआ बहुत प्रकार के आर्किड मिले। तथा यहां के संग्रहालय में यहां के अलग-अलग जनजातियों और जातियों के और जातियों के समूह के रहन-सहन, खेती-बाड़ी करने के लिए उपकरण, मनोरंजन चीजों का नमूना देखने को मिला, साथ में हथकरघा से चादर गमछा बनाते हुई  महिलाएं मिली और सबसे खास बात यहाँ सांस्कृतिक नृत्य का लाइव प्रदर्शन चल रहा था। काज़ीरंगा राष्ट्रीय पार्क अभी बरसात में बंद होने के कारण नही जा सके। अगली बार आने का वादा करके भालसे जी से विदा लिए की अगली बार आएमगे तब काज़ीरंगा नेशनल पार्क और बाकी चीजो को देखेंगे।

Thursday, 9 March 2017

मैं सुबह उठा और प्रात भ्रमण के लिए निकला । नए शहर में अकेले भ्रमण करने में मुझे विशेष आनंद मिलता है । बीते शाम को संतोष जी के साथ शहर के चारों ओर चक्कर लगा चुका था । तो कौन सी सड़क किधर जाती है ? और किधर क्या है ? यह सब जानकारी हो गई थी । मैं होटल से निकला और ब्रह्मपुत्र नदी की ओर चल दिया । कुछ दूर चलने के बाद मैं जेल की ओर मुड़ गया । आगे जाने पर मुझे रास्ते में कुछ बच्चे जोगिंग करते हुए मिले । हंसते मुस्कुराते हुए मैं भी उन बच्चों के साथ धीरे-धीरे दौड़ने लगा। आगे एक चौराहा मिला वहां से बच्चे वापस मुड़ गया और मैं वहां से दाहिने की ओर मुड़कर आगे चलते गया ।कुछ दूर चलने पर मै अग्निगढ़ के सामने पहुँच गया ।अभी यह खुला नही था मै यहाँ नहा धोकर फिर आऊगाँ। यहाँ से बाँये हाथ की ओर एक रास्ता जाता है उधर एक लोग जा रहे थे । मैने उनसे बात किया तो वह बताया कि पहाड़ी पर एक नयी पानी टंकी बन रहा है वही काम करता हूँ । तो उसके साथ मै भी चल दिया । वहाँ जाने पर मैने देखा कि एक बहुत बड़ी पुरानी हो चुकी कंक्रीट की पानी टंकी अवस्थित है । उसके बदले एक नयी टंकी का अधार की पीलर बनाने का काम चल रहा है ।वही से बायी ओर थोडी ऊपर एक बन्द फाटक दिखाई दिया । तो मै उसे देखने उसके अन्दर टूटी हुई तार की दिवार से प्रवेश किया । अन्दर जाने पर मुझे लगा कि यह सरकारी स्वस्थ केन्द्र है जो अभी बन्द पड़ा हुआ है ।सामने ब्रह्मपुत्र नद एकदम शान्त भाव से बह रहा था ।{ब्रह्मपुत्र को भगवान ब्रह्मा जी का पुत्र माना जाता है अतः सिर्फ यही एक नदी न होकर नद (पुरूष) माना जाता है। }। वहाँ से वापस मै नीचे आ गया और सीधे आगे चलने पर चित्रलेखा उद्यान मिला।माना जाता है कि यही पर द्वापर युग मे बाणसूर और श्रीकृष्ण के बीच युद्ध हुआ था। अभी वहाँ एक सुन्दर सा उद्यान है जहाँ बोटिंग और झूले आदि का अच्छा प्रबंध है । शहर के लोगो के लिए बहुत ही अच्छा व्यवस्था है ।मै टहलते हुए आगे बढ गया । कुछ कदम चलने के बाद जहाज घाट पहुँचा । यह घाट जलमार्ग द्वारा मालढूलाई के समय बहुत चहल - पहल होती होगी, ऐसी वहाँ की स्थिति देखकर लगा। लेकिन अभी वीरान पड़ा हुआ । आजकल जलपरिवहन बहुत कम हो गया है सिर्फ शौकिया तौर पर सैर के लिए ही नाव चलते है । आगे चलते हुए मै गणेश घाट पहुँचा । यहाँ पर एक बहुत पुरानी गणेश जी की प्रतिमा है । यहाँ दाहिने ओर मुड़ कर मै मुख्य मार्ग पर आ गया । और अब लगभग  डेढ़ घण्टे हो चुके थे टहल कदमी करते हुए तो मै अब सीधे होटल आया ।नहा धोकर तैयार होकर नास्ते किया और लगभग 09:00 बजे मै अग्निगढ़ देखने के लिए निकल गया ।प्रवेश टिकट लेकर मै पतली  पतली सीमेन्ट से बने पगडन्डी पर चलते हुए इस छोटी सी पहाडी की चोटी पर पहुचा ।चोटी से ठीक नीचे एक जगह पर भगवान शिव और श्रीकृष्ण के युद्ध को दर्शाता हुआ प्रतिमा बना हुआ है और इससे नीचे शिवी जी का ध्यान मुद्रा मे एक प्रतिमा स्थापित है । सबषे ऊपर चोटी पर चित्रलेखा, उषा को उसकी स्वपन मे आये युवक अनिरूद्ध का चित्र बनाते हुए मूर्ती बनी है ।इसी चोटी पर उषा को कैद करके रखा था ।चोटी पर ही एक छोटा सा दृश्य केन्द्र (भीव्य पाइन्ट )(मुझे इसका सटीक हिन्दी शब्द नही मिला) बना है।यहाँ से तेजपुर शहर का सुन्दर दृश्य दिखता है । यह एक छोटा  सा शहर है मुख्य बाजार छोडकर खूब हरियाली दिखती है ।सामने एक बार फिर शान्त बहता ब्रह्मपुत्र का दृश्य बहुत ही मनोरम लग रहा था । मानसून के ऋतु मे यही नदी इस प्रदेश को अपने साथ लाये अथाह जलराशि से प्रलय मचाती है पर कभी भी तेजपुर शहर मे इसका प्रलय का कोई प्रभाव नही होता  । क्योकि यह शहर छोटी छोटी टिलानूमा पहाडो पर बसा है ।यहा तक प्रलयकारी पानी पहुँचता ही नही ।मै यही पर बन कलाकृति को देख कर सोच रहा हूँ कि हमारी संस्कृति विरासत और पौराणिक ग्रंथ हमे  अपनी वृहद भारत को दिखाती समझाती है लेकिन आज के व्यवस्था और मानसिकता हमे नजदिक आने की मौका देता ही नही है । कहाँ द्वारिका देश के पश्चिमी छोर और कहाँ तैजपुर देश का पूर्वी छोर ।यही सब  विचार मेरे मन चल रहा थे तब तक संतोष जी फोन किये उन्हे मै बताया कि मै अग्निगढ़ मे हूँ । कुछ देर मे वे यहाँ आये और मै भी अब आगे देखने के लिए नीचे उतरा।<iframe style="width:120px;height:240px;" marginwidth="0" marginheight="0" scrolling="no" frameborder="0" src="//ws-in.amazon-adsystem.com/widgets/q?ServiceVersion=20070822&OneJS=1&Operation=GetAdHtml&MarketPlace=IN&source=ac&ref=tf_til&ad_type=product_link&tracking_id=919613283258-21&marketplace=amazon&region=IN&placement=B077RV8CCY&asins=B077RV8CCY&linkId=fee612fc988fe24fe09d40ad4f585bdd&show_border=false&link_opens_in_new_window=false&price_color=333333&title_color=0066c0&bg_color=ffffff">
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Thursday, 5 January 2017

ऐतिहासिक नगर तेजपुर असम (भाग -1) (The Historical city Tezpur , Assam)

25 दिसंबर 2016 ( तेजपुर)
 24 -25 दिसम्बर 2016 को ओरछा (मध्य प्रदेश) में घुमक्कड़ों का एक मिलन समारोह था । वहां जाने की तैयारी मैंने भी की थी। लेकिन मेरे पास छुट्टियों की कुछ कमी पड़ गई , जिसके कारण मैं जा ना सका । ओरछा घुमक्कड़ी मिलन के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप मुकेश पांडे जी का ब्लॉग यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते हैं ।ओरछा घुमक्कड़ी मिलन के बारे में वहाँ  आये ब्लाॅगर  डॉक्टर सुमित शर्मा , श्री हरेन्द्र धर्रा ने भी लिखा है । ओरछा ना जाने का मलाल हमें भी था। उसी मलाल को कम करने के लिए मैं कहीं कोई असम का अनछुआ - अनदेखा जगहों को देख लेना चाहता था । बहुत सोच - विचार करने के बाद मुझे एक  मित्र मिला -संतोष नायर जी ।जो असम के तेजपुर शहर में रहते हैं और मैंने तेजपुर घुमने का मन बनाया।

         ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर छोटे-छोटे पहाड़ी नुमा पर बसा एक ऐतिहासिक शहर है। इस शहर का संबंध द्वापर युग के बाणासुर से माना जाता है और वर्तमान मे असम का कला केन्द्र के लिए जाना जाता है। इस शहर के लगभग हर छोटे-बड़े देवस्थान और दर्शनीय जगहो से संबंधित पौराणिक कथा प्रचलित है ।उनमें से कुछ मुख्य जगहों को देखने मैं भी गया। मैं गोलाघाट से लगभग 5 घंटे बस द्वारा यात्रा करने के बाद तेजपुर पहुंचा । हमारी बस नुमालीगढ़, बोकाखाट, काजीरंग के कोहोरा रेन्ज, कलियाबोर होते हुए दोपहर के 02:00 तेजपुर पहुँचाया।रास्ते मे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान(एक सिंग वाले गैन्डा के लिए विश्व प्रसिद्ध है) के कोहोरा रेन्ज के मुख्य प्रवेश द्वार भी मिला । वहाँ आस पास बहुत होम स्टे, गेस्ट हाऊस , होटल दिख रहा था ।जानवर प्रेमी पर्यटक जानवरो को देखने लिए सुरज निकलने के पहले ही सफारी से जंगल की सैर करते है ताकी जानवरो से भेट हो सके । इसीलिए प्रवेश द्वार के आस पास जंगल मे सड़क किनारे बहुत से होटल वगैरह है ।मै तो फिर कभी जंगल और उनके प्राणियो को देखने का विचार मन मे करते हुए बस से गुजर रहे थे।
 तेजपुर पहुंचते ही मैंने होटल में एक कमरा लिया और खाना खाने के बाद घूमने के लिए तैयार हुआ ही था कि मेरे  मित्र संतोष नैयर जी अपने चार पहिया वाहन लेकर मेरे होटल पहुंचे । संतोष नैयर जी बहुत जिंदादिल इंसान हैं। वह मुझसे बहुत गर्मजोशी के साथ मिले, ऐसा लगा ही नहीं कि जिंदगी में हम लोग पहली बार मिल रहे हैं ।बातचित मे समय गवाँये बगैर मैंने अपना कैमरा उठाया और शहर भ्रमण के लिए निकल गए । हम लोग शहर के उत्तरी छोर पर स्थित महा भैरव मंदिर पहुंचे। यह मंदिर द्वापर युग के श्री कृष्ण के समकालीन बाणासुर द्वारा स्थापित है। यह मंदिर  प्राचीन समय में पत्थरो द्वारा निर्मित था लेकिन विध्वसंको द्वार ध्वस्त कर देने के बाद वर्तमान समय मे कंक्रीट से बना हुआ है ।  इस मंदिर का शिवलिंग का पत्थर एक जीवित पत्थर है जो साल दर साल बढ़ती है और यह लगभग जितने भी शिव मंदिर में शिवलिंग स्थापित है उनमें से सबसे बड़ा शिवलिंग है । भ्रमण के दौरान संतोष नैयर जी ने "तेजपुर नाम कैसे पड़ा ?" बहुत रोचक जानकारी दी ।उन्होने मुझे बताते हुए कहा । यहाँ का राजा महाराज बलि  का पुत्र बाणासूर था।    (बलि जिन्होने भगवान के बामन अवतार को तीन पग दान के रूप मे पूरा संसार दान दे दिया था) ।बाणासूर शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था।उसका एक सुन्दर पुत्री थी उषा। जिसे सपने मे एक सुन्दर युवक से प्रेम हो गया था और वह युवक श्रीकृष्ण का पोता अनिरूद्ध था। उषा की एक सखी चित्रलेखा बहुत बड़ी चित्रकार और माया शक्ति के जानकार  थी । चित्रलेखा उषा के लिए रात रातो अनिरूद्ध का अपहरण कर उषा के लिए ले आयी।जब बाणासूर को पता चला कि उसकी पुत्री कृष्ण के पोते से विवाह करना चाहती है तो वह क्रोधित हो गये ।    श्रीकृष्ण उसके मित्र कंस और जरासंघ का शत्रु था वह भी अपना शत्रु मानता था। उषा को अग्निगढ़ (अर्थात् ऐसा किला जिसके चारो ओर आग का घेरा हो जिसके अन्दर से बाहर न कोई आ सकता है और न बाहर से अन्दर कोई प्रवेश कर सकता है ) मे बन्धी बना दिया और अनिरूद्ध को भी कारावास मे डाल दिया।। आनिरूद्ध को छुड़ाने के लिए श्रीकृष्ण की सेना और शिव जी (बाणसूर को सुरक्षा का वरदान दिया था) व बाणासूर की सेना मे भीषण युद्ध हुआ था । जिसके कारण लहू  से धरती लाल हो गयी थी । इसलिए सोनितपुर सोनित (लहू को संस्कृत मे सोनित कहा जाता है) + पुर (नगर) नाम पड़ा ।स्थानिय भाषा मे लहू(खून) को तेज भी कहा जाता है अतः शहर का नाम तेजपुर हो गया।
इन  जगहों को अपने यादों में सजोने के लिए मैंने अपने कैमरे से यहां के कुछ तस्वीरें कैद किया ।
संतोष नैयर जी के साथ
महाभैरव मंदिर का प्रवेश द्वार

महाभैरव मंदिर प्रांगण
महाभैरव मंदिर मे शिवलिंग

 संतोष नैयर जी मुझे शहर के ऐतिहासिक - सांस्कृतिक जगहों के बारे में बात करते हुए ब्रहमपुत्र नदी के तट पर बना हुआ कला गुरु के समाधि स्थल पर ले गए ।यह समाधि स्थल एक महान अभिनेता, चित्रकार, संगीतकार, कवि,नाटककार, लेखक और समाज सुधारक विष्णु प्रसाद राभा जी का है। इन्हें प्यार से कला गुरु कहा जाता था। इतना देखते देखते हैं अब शाम हो चुका था ।

कला गुरु समाधि स्थल






नेयर साहब मुझे कुछ एतिहासिक महत्व के स्थलो जैसे - भैरवी मंदिर , अग्नीगढ़ , चित्रलेखा उद्यान ,गणेश घाट , जहाज घाट के बारे बात करते हुए मेरे होटल तक छोड़ दिए।
 मै आपको छोड देता हूँ कुछ चित्रो के साथ । अगले भाग मे मै इन सब के बारे मे अपनी नजरिया के साथ मिलूँगा।
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Monday, 2 January 2017

अहोम साम्राज्य की राजधानी (शिवसागर, असम)


शिवमंदिर (शिबदोल)

रंग घर के सामने खुला मैदान

रंग घर की उपरी मंजिल पर जाने के लिए सीढियाँ

रंग घर 
शिवसागर का पुराना नाम रंगपुर था जो मध्यकाल में अहोम राजाओं का राजधानी था । वर्तमान में यह शहर अपने ऐतिहासिक धरोहर के लिए जाना जाता है। असम के इतिहास को देखने व समझने के लिए यह शहर महत्वपूर्ण है । मुझे भी इन सब के बारे में जानने की बहुत इच्छा थी। मुझे कम से कम एक साथी के साथ घुमना अच्छा लगता है।तो मेरे इस यात्रा के साथी है सुशान्त राजपूत।
          शहर के केंद्र में स्थित एक बड़ा सा तालाब जिसे असमिया भाषा में बोड़ पोखरी कहा जाता है । इसी से इस शहर का नाम शिव सागर पड़ा। यह तलाब आकर्षण का केंद्र इसलिए है कि यह शहर की ऊंचाई से इसकी ऊंचाई अधिक है। इसी के तट पर तीन मंदिर बने हैं एक शिव मंदिर ,दूसरा देवी मंदिर और तीसरा विष्णु मंदिर। असमिया भाषा में मंदिर को दोल कहा जाता है।  अतः इसे स्थानीय भाषा में शिवदोल कहा जाता है। इन मंदिरों का निर्माण सन 1734 ईस्वी में रानी अंबिका पति स्वर्गदेव शिव सिंह ने करवाई थी। (असमिया भाषा में राजा को स्वर्ग देव कहा जाता है।) इस शिव मंदिर की ऊंचाई 104 फीट है । इस मंदिर के बाहरी भित्तियो में सुंदर कलाकृति उकेरी गई है। और  मंदिर प्रांगण सुंदर बगीचा की तरह सजाया गया है। जो बहुत ही मनमोहक है ।मैं मंदिर में गया हाथ जोड़कर शिव जी को प्रणाम किया। मंदिर प्रांगण में निकलकर आस-पास के दृश्यों को अपने कैमरे में कैद किया। मंदिर प्रांगण में चारों तरफ भ्रमण करने के बाद हम लोग वहां से निकले और रंग घर की ओर रवाना हो गए ।
        रंग घर एशिया का सबसे पुराना पैवेलियन (स्टेडियम) है। यह शिवसागर से मात्र 3-4 किलोमीटर जोरहट की ओर आसाम ट्रंक रोड (Assam Trunk Road) में स्थित है। जहां हम लोग आसानी से शेयर टैक्सी से पहुंच गए। यह स्थान भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। हम लोग इसके टिकट काउंटर से 20 ₹ के टिकट लिये और अंदर प्रवेश किए। यहां पर अहोम राजा सांस्कृतिक कार्यक्रम और खेल कूद (भैंसों की लड़ाई) करवाया करते थे। यह एक बड़ा सा खुला मैदान है और मैदान के अंतिम छोर में एक दो मंजिला भवन है । जो एक पैवेलियन है। यह भवन एक विशेष प्रकार की चिकनी लाल रंग का एक प्रकार का सीमेंट और पत्थरों से बना है। इस भवन मे बड़े झरोखें बने है जिससे सामने मैदान मे हो रहे कार्यक्रम को देख सके। भवन के ऊपरी मंजिल पर चढ़कर आसपास के दृश्यो को कैमरे से कैद किये और खुद कैमरे में कैद हुए। देख कर जब मन तृप्त हुआ तो पेट की भूख जाग चुकी थी और अब इसकी तृप्ति के लिए हम लोग शहर एक होटल में आसामीस थाली खाया । खाकर जब हम लोग तृप्त हुए तब तक दोपहर के 3:00 बज चुके थे । और अब हमारा मंजिल था अहोम राजाओं का राजमहल महल करैंग घर ।(असमिया भाषा मे राज महल को करैंग घर कहा जाता है)।
      शहर से लगभग 9-10 किलोमीटर दूर सिमलगुड़ी रेलवे स्टेशन की ओर है। शिव सागर शहर से हर समय शेयर टैक्सी यहां आने के लिए उपलब्ध रहती है। तो हम लोग बहुत आसानी से  अहोम राजाओं का राजमहल करैंग घर पहुंच गए। पहुंचते-पहुंचते सूरज अपने अंतिम किरने धरा पर बिखेर रहे थे। यह स्थान भी भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है तो यहां भी हम लोग को टिकट लेकर प्रवेश करना पड़ा। यह एक चार मंजिला भवन है इसका निर्माण भी बड़े-बड़े पत्थरों और लाल रंग की सीमेंट से हुआ है। इस महल का निर्माण सन 1751 -52 में अहोम राजा राजेश्वर सिंह ने करवाया था। हम लोगों ने जब महल में प्रवेश की है तब तक सूरज ढल चुका था फटा-फट हम लोगों ने कैमरे से महल और आसपास के दृश्य को कैद किए महल के सकरी सकरी सीढ़ियों से होते हुए हम लोग सबसे ऊपर शिखर पर पहुंचे। यह शिखर सुरक्षा के लिए यहां पर रक्षक खड़े होकर महल के चारों ओर  निगरानी करते होंगे। महल की दीवारें लाल रंग की ईंटो से बनी हुई है। अब तक शाम हो चुकी थी तो हम लोग वहां से बाहर निकले और  और वापसी की तैयारी करने लगे ।अंधेरा हो जाने के कारण हम लोगों ने अहोम साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण वास्तुकला तलातल घर देखने से वंचित रह गए। फिर कभी समय निकालकर इसको देखने की इच्छा है। यहां से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर सीमलगुडी रेलवे स्टेशन है। यहीं से हम लोग को रात के 7:00 बजे इंटरसिटी ट्रेन पकड़नी थी।
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करैंग घर (राज महल) 

करैंग घर के गलियारे

करैंग घर की सकरी - सकरी सीढियाँ



करैंग घर सामने से 

रंग घर (पैवेलियन) के सामने खुला मैदान 
रंग घर का पूर्वी द्वार
करैंग घर मे मेरे साथी सुशान्त
यहाँ कभी भैसो का खेल होता था आज उनकी याद मे मूर्तियाँ 
मै और मेरे साथी

करैंग घर के सीढियाँ
करैंग घर दुसरे कोण से




Wednesday, 28 September 2016

Culture and Heritage of Assam असम की संस्कृति और विरासत (भाग -3)

आपने पिछले लेखो मे मेरा असम पहुँचना और वहाँ की इतिहास को पढ़ा।यात्रा के दौरान गुवाहाटी मे एक सज्जन हमारे ट्रेन पर सवार हुए जो खादी एवं ग्राम उद्योग विभाग मे एक अधिकारी है।उन्होने मुझे असम के जन- जीवन और संस्कृति पर बहुत जानकारी साझा किए।जिसे मै वहाँ पहुँचकर स्वयं देखा और समझा।   अब आप देखिए उनके नजर से असम की जन जीवन और संस्कृति की एक झलख।
 
     शेष भारत की तरह यहाँ  के भी अधिकांश लोगो का आजीविका का मुख्य स्त्रोत कृषि हैं। एक चीज अलग है वो है चाय की बागवानी।जो यहाँ के लोगो का नगद आय का मुख्य स्त्रोत है। अधिकांश चाय का बड़े-बड़े बगान ब्रिटिश काल से है उनमें से बहुत से बगान पर हिन्दुस्तान युनिलीवर, टाटा और ITC जैसे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अधिकिर है। कुछ बगानों पर स्थानीय  सहकारी समिति का अधिकार है । आज़ादी के बाद भारत सरकार ने निजी जमीन पर बगान लगवाने मे सहयोग देकर किसानो की आय वृद्धी करने मे मदद किया।
एक चाय का बगान 

  पूरे भारत वर्ष मे एक चीज मुझे बहुत प्रभावित करता है। वो है भारतीय महिला अपनी संस्कृति से कोई समझौता नहीं करना।वर्तमान समय मे जहाँ पुरूष अपने परिधान को पूरी तरह से पश्चिमीकरण कर दिया हैं वही महिलाए पूर्ण स्वदेशी एवं पारम्पारिक परिधान धारण करना पसंद करती हैं।यहाँ की महिलाओ की पारम्पारिक परिधान हैं - मेखला चादर। एक अधोवस्त्र जो एक लहंगा की तरह ही होता है पर बनावट मे बहुत अन्तर होता है, मेखला कहते है और दुसरा चादर जिसे उपर पहना जाता है ।इसमे सबसे ख़ास बात है इसे अधिकांश महिलाऐ अपने हाथो से अपने हथ-करघे के द्वारा स्वयं बुनती हैं।

     असम का मुख्य त्योहार बीहू हैं । तीन अलग अलग समय पर अलग -अलग तरह से मनाते हैं।
       (1) कंगाली बीहू -  इसे काति बीहू भी कहा जाता है क्योकि इसे असमिया काति माह (हिन्दी कार्तिक माह) अक्टूबर मे मनाया जाता है।  वर्ष के इस माह मे सभी का अनाज भण्डार खाली हो जाता है।धान की फसल खेतो मे बढ रहा होता है।इसिलिए इसे कंगाली बीहू कहा जाता है ।यहाँ के लोग  घर - आंगन मे तुलसी के पौधे के पास और धान के खेतो मे दिया जलाकर पुजा करते हैं और भगवान से प्रथना करते है कि उनके फसल की रक्षा करें।


खेत मे दिया जलाकर पुजा करते हुए।

     (2) भोगाली बीहू -   इसे माघ बीहू भी कहा जाता है क्योकि इसे माघ महिने (मध्य जनवरी) मे मनाया जाता है।जब उत्तर भारत मे मकर संक्राति मनाते है ।इस समय फसल की कटाई होती है , सभी के घरो मे नया अनाज आता है। इसके खूशी मे तरह-तरह के पकवान बनाया जाता है और एक दुसरे को बाँटते है । इसलिए इसे भोगाली बीहू कहा जाता है।
असमिया पकवान

       (3) रंगोली बीहू - यह सबसे मुख्य त्योहार है । यहा के लोग नृत्य संगीत का सबसे रंगीन उत्सव रंगोली बीहू (बोहाग बीहू) मे पूरे जोश उल्लास के साथ भाग लेते है।
रंगोली बीहू असमिया नव वर्ष के प्रारम्भ होने के उपलक्ष्य मे मनाया जाता है। नव वर्ष चैत्र माह का प्रथम दिन से आरम्भ होता है। रंगोली बीहू का प्रथम दिन गायो को अर्पित है ।इसे गोरू बीहू कहा जाता है।
   यहा के लोग विशेषतः किसान वर्ग अपने गायो को नदियो ,तालाबो अथवा झीलो मे ले जाकर एक समारोह की तरह हल्दी का लेप व अन्य वस्तुओ से नहाते धोते है। गायो को नई रस्सी (पगा) से बांध कर बैगन व लौकी (कद्दू) खिलाते है।
अपने गौरू (गाय -बैल) को नहलाते हुए किसान
       रंगोली बीहू उत्सव कम से कम एक सप्ताह और कही कही पूरा महीना तक चलता रहता है।
     ये लोग नई नई कपडे पहनते है । पुरूष कुर्ता , धोती और असमिया गमछा गले अथवा सिर पर बांधते है। महिलाए सुनहरे रंग की मूंगा रेशम की साड़ी धारण करती है।
    युवा और बच्चे परिवार के बड़े बुजुर्गो से आर्शिवाद लेते है ताकि नव वर्ष खुशहाली समृध्दी स्वाथ्य भाग्यशाली हो। समूह बनाकर नृत्य संगीत करते है और पूरे राज्य मे अलग अलग जगहो पर नृत्य संगीत का प्रतियोगिता आयोजित किया जाता है।
पारम्पारिक वस्त्र धारण की हुई परि

एक और परि
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Saturday, 24 September 2016

Culture and Heritage of Assam असम के संस्कृति और विरासत से एक मुलाकात (भाग-2)

पिछला लेख मे आपने मेरे असम तक पहुचने का वृत्तांत पढा।कही कोई पर्यटक अथवा घुमक्कड़ जाता है तो मुख्यतः तीन चीज विचार करने योग्य होता है। वहां का भुगोल ,इतिहास और सामाजिक बनावट ।

       आइऐ एक नजर असम के इतिहास पर डालते है ।
महाभारत काल मे इस भूभाग को "प्रागज्योतिष" के नाम से जाना जाता था।कहा जाता है कि यहां का राजा भागदत्त ने महाभारत युद्ध मे भाग लिया था।इसके बाद प्रचीन काल मे इस भू भाग को कामरूप के नाम से जाना गया ।तथा इसके बाद मध्य काल मे यह छोटे -छोटे क्षेत्र मे बट कर अलग -अलग शासको ने शासन किया।कामरूप साम्राज्य का पूर्वी क्षेत्र (ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण से मध्य असम) कचारी लोगो का शासन था।ब्रह्मपुत्र नदी से उत्तर और पूर्वी असम मे सूतिया लोगो का शासन था। और कुछ क्षेत्र सूतिया राज्य के पश्चिम मे भूईंया लोगो के नियंत्रण मे था। कचारी और सूतिया राज्य के मध्य के भू - भाग मे बर्मा प्रवासियो के नेता "सुकाफा " ने अहोम साम्राज्य की स्थापना किया। 16वीं शताब्दी मे अहोम साम्राज्य की विस्तारवादी नीति अपनाया। सूतिया राज्य के कुछ क्षेत्र को अपने मे मिलाकर उसे मध्य असम से पूर्व की ओर दबा दिया। और कोच राज्य (कचारी) के कुछ हिस्से को कब्जाकर उसे पश्चिम की ओर धकेल दिया। इस प्रकार अहोम साम्राज्य लगभग असम मे कायम हो गया।अहोम साम्राज्य मे ही श्रीमंत शंकरदेव ने एकशरण धर्म की स्थापना किया जो आज लगभग असम के सभी गांवो, कस्बों और शहरों मे स्थापित नामघर मे उनके रचे ग्रंथ को पूजा जाता है और पाठ किया जाता है। 1671 ई• मे अहोम-मुगल युद्ध  जो सरायघाट का युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है ।यह युद्ध 1682 ई• मे मुगल के पराजय के बाद खत्म हुआ। 1824 ई•को आंग्लो - बर्मा युद्ध के बाद औपनवैशिक राज धीरे - धीरे असम मे कायम हुआ। आजादी के बाद 1979 ई• असम आन्दोलन All Assam Studen Union और All Assam Gana Sangram Parisad के नेतृत्व मे सरकार से गैर कानूनी ढंग से बंगलादेश से आये प्रविसियो को पहचान कर बाहर करने और नये प्रवासियो को आने से रोकने की मांग किया।आरम्भ मे यह आन्दोलन अहिंसक था लेकिन बाद मे यह बहुत हिंसक हो गया और नौगांव जिला मे लगभग 3000  ज्यादा (सरकारी आंकडा) वास्तव मे लगभग 10,000 लोगो ने अपनी जान गवाया।यह नरसंहार 1985 ई• मे आन्दोलन के नेता और भारत सरकार के बीच "असम समझौता" होने के बाद बन्द हुआ। और यह संगठन एक राजनीति पार्टी मे तब्दील हो कर 1985 ई• के असम विधान सभा चुनाव मे बहुमत मे आई ।

    काग्रेस के नेता अपनी सत्ता को पाने के लिए यानी कि एक भोट बैंक बनाने के लिए घुसपैठ और गैरकानूनी बंगालादेसी प्रवासियो को बाहर करने मे कोई ठोस कदम नही उठाया । जिससे यहाँ के निराश लोगो ने एक संगठन बनाया ULFA  United Libration front of Assam ।जो सरकार और देश के खिलाफ हथियार उठा लिया ।धीरे धीरे म्यानमार के एक  उग्रवादी संगठन से मिलकर यह दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन बन गया ।इसका मूल लक्ष्य था घुसपैठ को रोकना और प्रविसी बंगालदेशियो को भगाना के लिए सत्ता को हथियार के बल पर पाना। आरम्भ मे इसे जनता का सपोर्ट था । इनके नेता पुलिस से बचने के लिए बंगाल देश मे शरण लेते थे , धीरे धीरे इसका लक्ष्य बंगालादेसी प्रवासियो के मुदा कमजोर कर सिर्फ  देश से अलग सत्ता पाने लिए हो गया । जिससे जनता का सपोर्ट कम हो गया ।और लगभग 2009  तक  भारतीय सेना के ऑपरेशन के बाद यह संगठन खत्म हो गया । अब इस संगठन के नाम पर कुछ लोग फिरोती लेता है । और इस प्रकार छिटपुट कभी कभी नजर आता है ।

     अब इधर बाहरी लोग बिन्दास होकर घूमने आ सकते है ।यहाँ बहुत से प्रकृतिक और एतिहासिक धरोधर है ।

     तो मै भी अगले लेख मे चलूंगा अहोम साम्राज्य की राजधानी और वर्तमान असम की सांस्कृतिक राजधानी शिवसागर , यहाँ के एतिहासिक धरोधर को देखने । असम के विरासत और संस्कृति को मेरे नजर से देखने के लिए हमारे साथ बन रहिऐ। धन्यवाद !


यहाँ के राहो की खूबसूरती देखिए ।मुझे रूक रूक कर इन नजारो को कैद करने को मजबूर करता।

Wednesday, 21 September 2016

असम के संस्कृति और विरासत से एक मुलाकात (भाग -1) Culture and heritage of Assam

बात पिछले वर्ष दिसम्बर 2015 की है। मै एक ऐसे मित्र के घर जा रहा था, जिससे मै सिर्फ एक बार मुलाकात हुआ था जब मै रेलवे के भर्ती परिक्षा के लिए असम आया था।असम के लामडिंग शहर मे पहली मुलाकात मे औपचारिकता पूरा करते हुए नाम पता पूछा। "आपका नाम ?"
"ध्रुवा ज्योति गोगई"
"घर कहां है?"
"तिनसुकिया जिला के छबुआ वायू सेना के बेस कैम्प के पास एक गांव नदुआ गांव"
मै और ध्रुवा ज्योति गोगई ,नवम्बर 2013
मैने गूगल मैप मे वो जगह ढूंढा और रक्षित कर लिया । उसके माता- पिता भी आये हुए थे। उसका परिवार मिलनसार था। जो मुझे बहुत पसंद आया। हमलोग अपना अपना मोबाइल नम्बर लेन देन कर लिया। इस प्रकार दोपहर से शाम तक साथ रहे। उन लोगो को रात को ट्रेन चढाते समय मैने कहा आपका घर आप सब से मिलने जरूर आऊंगा। उन्होने भी आने का बहुत जिक्र किया था। उसके बाद वापसी का ट्रेन पकड़ कर हम सब भी घर के लिए रवाना हो  गये।
मै अपनी मित्र मंडली के साथ कामाख्या मंदिर परिसर मे। 2014

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 निर्मल हृदय स्वछंद विचार वाले लोग मुझे बहुत पसंद है। मुझे ऐसे लोगो के साथ समय बिताना अच्छा लगता है। ऐसा गुण लगभग सभी बच्चो मे होता है। अतःमै खाली समय निर्मल बच्चो के साथ बिताता हूं।मेरा दिनाचार्या है सुबह तैयार हो कर राजकीय पुस्तकालय धनबाद झारखण्ड सरकार, मे अपने पसंद के किताब पढना और शाम को  अपने गांव के प्यारे बच्चो को अपने घर बुलाकर उनसे बात चित करना , पढाना।इस प्रकार मेरे दिन कट रहे थे।
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 एक दिन मेरे फोन पर एक अनजान नम्बर से फोन आया। अवाज़ एक अलग उच्चारण के साथ आ रही थी - "कैसे हो तुम?" "मै ध्रुवा बोल रहा हूं असम से "
मै कुछ देर के लिए ठहर गया और खुशी से बोला - "ठीक हूं । आपना हाल चाल बताओ।"
इसके बाद लगभग हर महिने एक दो बार बात चित होता ।
 लगभग डेढ वर्ष बिद नियुक्ति पत्र मिलने पर मै तिनसुकिया आया।मैने फोन कर कहा कि मै तिनसुकिया आ रहा हूं। वह खुश होखर कहा - पहुंच कर फोन करना ।मै होटल मे ठहरा था वह आया अपने साथ अपना घर जाने बोल रहा था ।लेकिन मेरे साथ एक सहकर्मी मित्र था। और उसका घर वहां से लगभग 40 किमी• दूर था।मुझे सुबह रेलवे मंडल कार्यालय जाना था अतः मै उसका घर नही जा सका । मैने कहा अब मै तो असम मे ही हूं।कभी भी अब तुम्हारा घर आ जाऊंगा। अगले सुबह कागजी औपचारिकता पूरा करके मै कार्यस्थल मरियानी जो वापस गुवाहाटी की ओर लगभग 200 किमी• है, आ गया। इस प्रकार मै नये काम मे लग गया और देखते - देखते एक वर्ष बीत गया।जब मै उसके घर जा रहा था।
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 उसके घर जाने के पहले मन मे तरह तरह के विचार आया कि ये लोग हिन्दी भाषियो के के हिंसात्मक व्यवहार करते है । बीते वर्ष 2012 की एक बड़ी हिंसात्मक घटना हुआ था ।घटना का एक केन्द्र क्षेत्र छबूआ मे था ।लेकिन मन मे एक कोतूहल भी था उन लोगो को जानने समझने का।हिंसात्मक कार्य कुछ असामाजिक लोगो का है अथवा सबकी मानसिकता वही है।
  फोन से उससे निर्देश लेकर और गूगल मैप की मदद से मै उसके गांव नदूआ ग्रान्ट गांव मे उतरा। उसे फोन किया तो वह अपनी दीदी की स्कूटी लेकर मुझे आपने घर ले आया ।उसके घर मे कोतूहल था एक अजनबी मेहमान की खातीरदारी करने के लिए।उसकी मां ज्यादा हिन्दी नही बोल पाती और मै  असमिया बोल नसी पाता । फिर भी काम चलाने भर हम लोग वार्तालाप कर लेते थे। मै उसके घर पर चार दिन रहा।मै वहा रहकर ब्रहामपुत्र नद के तट पर घुमता उसके चाय बगाने मे चाय के बारे मे देखता समझता और शाम को दिकम एक कस्बा जैसा शहर जहां कुछ दुकान है , जाता उसके स्थनीय मित्रो से मिलता बातचित करता।
मेरे मित्र का घर । इसे असम टाइप घर कहते है ।

मै ब्रह्मपुत्र के विशाल बालू के मैदान मे । 

मै और ध्रुवा ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे ।
 इन चार दिनो मे मैने वहा के जन जीवन के बारे मे बहुत कुछ जाना समझा । अगली लेख मे उन सब बातो को रखूंगा ।
 आपको यह लेख कैसा लगा ?  सुझाव जरूर दे ।